
कई दिनों से सोच रहा था कि बहुत कुछ मन में है ..... कासे कहूँ ? कोई रास्ता समझ में नहीं आ रहा था । जीवन की आपाधापी में अपने आप को खोने सा लगा था जो पहले का वास्तविक आनंद था वो कहीं खो सा गया था। इसी सब में जहाँ बहुत कुछ पाया वहीँ बहुत कुछ खोया भी। समय बीतता जा रहा है । आने वाला पल जाने वाला है। ये सब इतना तुरंत है की हम सोच भी नहीं सकते। ये 'पल' आया .....और ये चला गया। बंद हथेली में से रेत की तरह जीवन के चालीस वर्ष कब निकल गए पता ही नहीं चला। अब इस स्थिति में समय कम है और काम ज्यादा। अब तो चेतो ........ गुरु आनंद ! वरना जीवन के अपरान्ह काल में सिर्फ खाली मुट्ठी रह जाएगी। ये ब्लॉग भी अपने आप में अनोखा माध्यम है। अपने आपको या पूरी दुनिया को 'बुरा'.......... या 'भला' कह सकते हो। मैं कंप्यूटर के बहुत करीब लेकिन ब्लॉग से बहुत दूर रहा। इसको लिखने की प्रेरणा माननीय राजीव ओझा जी से मिली , उन्होंने ही प्रेरित किया की मैं ब्लॉग लिखना शुरु करूँ। ये कोई तंत्र मन्त्र वाले ओझा नहीं हैं लेकिन जादू कमाल का करते हैं अपनी लेखनी से ( http://rajubindas.blogspot.com/ ) । अब आज लिखते लिखते समझ में आ गया की भैया ब्लॉग बहुत काम की चीज है।
आज तो इतना ही बाकी अब जीवन का हर पक्ष और विपक्ष लिखने का प्रयास करता रहूँगा। जीवन के विभिन्न कालों में हुई घटनाएं , पुराने दोस्त, बचपन की यादे, स्कूल कॉलेज और न जाने क्या क्या। सब दिमाग में आ रहा है।
फिर मिलेंगे! होर्न प्लीज़ !
ओके टाटा
बुरी नज़र वाले तेरा मुह काला !
:)
Guru Anadacharya ham sab ooper wale ki hath ki kathputali hain..Prerna bhi vahi deta hai aur pareshan bhi vahi karta hai. Ha ha ha . Shuruat me hi ojha ki shubhkamnao ke sath aap khoob likhen aur khush rahen .. yahai hai permatma ka pemanand . :)
ReplyDeleteशुभकामनाओ के लिए शत शत धन्यवाद ............................ प्रेरणा कहीं से हो..... परन्तु माध्यम तो कोई न कोई होता ही है.
ReplyDeleteअनुरोध है की कृपया आगे से भी दयादृष्टि बनाये रखिये और अपने बहुमूल्य मार्गदर्शन से इस ब्लॉग की राह प्रशस्त करें .