'लाश के वास्ते'
बड़ा अजीब सा विषय है ये ...... सवाल यहाँ ये है कि लाश किसकी है और वास्ता किससे है.
'लाश के वास्ते' सुनते ही अस्पतालों के आस पास और मरघट के किनारे खड़ी छोटी बड़ी गाड़ियाँ ..... जिन पर कभी 'स्वर्ग विमान' लिखा होता है, याद आ जाती हैं .
इन्हें देखते तो हम अक्सर हैं लेकिन कभी सोचते नहीं कि 'किसकी लाश' ??....... और 'किसके वास्ते'??
कभी सोचिये उस व्यक्ति के बारे में जो ऐसी गाड़ी का मालिक या ड्राईवर होता है. वो सिर्फ इस बात का इंतज़ार करता है कि कब कोई मरे और उसे कुछ पैसे कमाने के लिए मिलें जिससे वो अपने परिवार का भरण पोषण कर सके.
आते - जाते भले ही आप उसे नेगलेक्ट कर दें लेकिन हो सकता है आपको देखकर वो अपने व्यापार कि संभावनाएं आपके अन्दर तलाश करता हो. ................. जी हाँ 'लाश कि तलाश' .
अस्पताल के बाहर खड़े इस स्वर्ग विमान का चालक जब देखता है कि कोई एम्बुलेंस किसी सीरिअस मरीज को लेकर पीं - पां ........ पीं - पां करते आती है तो उसकी उनींदी
आँखों में एक चमक आ जाती है. उसके मन में एक आशा कि डोर बंद जाती है कि आज हो सकता है कि कुछ धंधा मिले.
जहाँ हम सब उठकर सुबह - सुबह भागवान से मनाते हैं कि हे भगवन ! आज का दिन सब अच्छा अच्छा गुजरे ......वहीँ वो गाड़ी मालिक सुबह उठ कर एक मौत या एक लाश की कामना करता हो . .... क्योंकि उसकी गाड़ी के साथ उसकी जिंदगी भी 'लाश के वास्ते' हो गयी है .
इन लोगों के अलावा मरघट पर क्रिया कर्म करने वाले पंडित और उनके अस्सिस्टेंट, घाट पर लकड़ी बेचने वाले ठेकेदार, पटवा व्यापारी, घाट के बहार पान कि गुमटी वाला और एक अदद चाय वाली बुढ़िया ...... शायद इन सबको रोज़ इंतज़ार रहता है ज्यादा से ज्यादा लाशों का.
जब कभी मौसम ठीक होता है और गृह स्थितियां भी .... तब चौकड़ी लगाकर ताश खेलते इन लोगों के मुंह से निकल ही जाता है कि ....."आज तो धंधा चौपट हो गया दोस्त ........ हे भगवान् !! आज किसी को मारा नहीं क्या?" ................ वहीँ अगर प्रभु कि कृपा दृष्टि इनपर रही और मौसम के उतार चढ़ाव के साथ गृह स्थितियों ने भी इनका साथ दिया तो भैया ...... इनका धंधा तो 'चकाचक'.
तो जनाब ये समाज के वो लोग हैं जो 'लाश के वास्ते हैं'
अब कभी सोच कर देखिये कि क्या हमारे आस पास भी ऐसे लोग हैं क्या .... जो 'लाश के वास्ते हैं' ?
??????????
कभी - कभी हमारे इर्द-गिर्द भी ऐसे ही लोग होते हैं जो कामना करते हैं अपने बड़े बुजुर्गों और बूढ़ों की मौत की ....... सिर्फ धन .... संपत्ति और लालच के वास्ते .
और कभी कभी अपनी जिम्मेदारी से बचने के वास्ते कामना करते हैं की उनके बड़े जल्द से जल्द लाश में परिवर्तित होकर उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त करें.
तो दोस्तों जरा सोचिये और समझिये की कौन कौन है हमारे आस पास ..... 'लाश के वास्ते'.
" जिंदगी यूँ गुज़ार दी अपनों के लिए, सारी उम्र हम उनके लिए ही मरते रहे.
हमने दिया जिन्हें जीने का सहारा, वो ही हमारी मौत की दुआ करते रहे. "
बड़ा अजीब सा विषय है ये ...... सवाल यहाँ ये है कि लाश किसकी है और वास्ता किससे है.
'लाश के वास्ते' सुनते ही अस्पतालों के आस पास और मरघट के किनारे खड़ी छोटी बड़ी गाड़ियाँ ..... जिन पर कभी 'स्वर्ग विमान' लिखा होता है, याद आ जाती हैं .
इन्हें देखते तो हम अक्सर हैं लेकिन कभी सोचते नहीं कि 'किसकी लाश' ??....... और 'किसके वास्ते'??
कभी सोचिये उस व्यक्ति के बारे में जो ऐसी गाड़ी का मालिक या ड्राईवर होता है. वो सिर्फ इस बात का इंतज़ार करता है कि कब कोई मरे और उसे कुछ पैसे कमाने के लिए मिलें जिससे वो अपने परिवार का भरण पोषण कर सके.
आते - जाते भले ही आप उसे नेगलेक्ट कर दें लेकिन हो सकता है आपको देखकर वो अपने व्यापार कि संभावनाएं आपके अन्दर तलाश करता हो. ................. जी हाँ 'लाश कि तलाश' .
अस्पताल के बाहर खड़े इस स्वर्ग विमान का चालक जब देखता है कि कोई एम्बुलेंस किसी सीरिअस मरीज को लेकर पीं - पां ........ पीं - पां करते आती है तो उसकी उनींदी
आँखों में एक चमक आ जाती है. उसके मन में एक आशा कि डोर बंद जाती है कि आज हो सकता है कि कुछ धंधा मिले.
जहाँ हम सब उठकर सुबह - सुबह भागवान से मनाते हैं कि हे भगवन ! आज का दिन सब अच्छा अच्छा गुजरे ......वहीँ वो गाड़ी मालिक सुबह उठ कर एक मौत या एक लाश की कामना करता हो . .... क्योंकि उसकी गाड़ी के साथ उसकी जिंदगी भी 'लाश के वास्ते' हो गयी है .
इन लोगों के अलावा मरघट पर क्रिया कर्म करने वाले पंडित और उनके अस्सिस्टेंट, घाट पर लकड़ी बेचने वाले ठेकेदार, पटवा व्यापारी, घाट के बहार पान कि गुमटी वाला और एक अदद चाय वाली बुढ़िया ...... शायद इन सबको रोज़ इंतज़ार रहता है ज्यादा से ज्यादा लाशों का.
जब कभी मौसम ठीक होता है और गृह स्थितियां भी .... तब चौकड़ी लगाकर ताश खेलते इन लोगों के मुंह से निकल ही जाता है कि ....."आज तो धंधा चौपट हो गया दोस्त ........ हे भगवान् !! आज किसी को मारा नहीं क्या?" ................ वहीँ अगर प्रभु कि कृपा दृष्टि इनपर रही और मौसम के उतार चढ़ाव के साथ गृह स्थितियों ने भी इनका साथ दिया तो भैया ...... इनका धंधा तो 'चकाचक'.
तो जनाब ये समाज के वो लोग हैं जो 'लाश के वास्ते हैं'
अब कभी सोच कर देखिये कि क्या हमारे आस पास भी ऐसे लोग हैं क्या .... जो 'लाश के वास्ते हैं' ?
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कभी - कभी हमारे इर्द-गिर्द भी ऐसे ही लोग होते हैं जो कामना करते हैं अपने बड़े बुजुर्गों और बूढ़ों की मौत की ....... सिर्फ धन .... संपत्ति और लालच के वास्ते .
और कभी कभी अपनी जिम्मेदारी से बचने के वास्ते कामना करते हैं की उनके बड़े जल्द से जल्द लाश में परिवर्तित होकर उन्हें जिम्मेदारी से मुक्त करें.
तो दोस्तों जरा सोचिये और समझिये की कौन कौन है हमारे आस पास ..... 'लाश के वास्ते'.
" जिंदगी यूँ गुज़ार दी अपनों के लिए, सारी उम्र हम उनके लिए ही मरते रहे.
हमने दिया जिन्हें जीने का सहारा, वो ही हमारी मौत की दुआ करते रहे. "